Showing posts with label कविताएँ. Show all posts
Showing posts with label कविताएँ. Show all posts

Saturday, May 29, 2021

"श्यामल सी" - मीना चोपड़ा | Beautiful Poem | Hindi Kavita | Best Poetry i... Shayamal si

कविता पाठ - मीना चोपड़ा भारतीय मिनस्ट्री ऑफ़ कल्चर 'Ministry Of Culture India'

 

मीना चोपड़ा (लेखक, कलाकार ):

 मीना चोपड़ा एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेखन और कलाकारिता के लिए सम्मानित एवं पुरस्कृत,लेखक,कवि और दृश्य कलाकार हैं,जिनके पास शब्द,रंग और रूप से समृद्ध एक अपरिहार्य और असीम काल्पनिक संसार है,जो उनके लेखन एवं चित्रकला में जीवंत होकर उभरता है । उत्तर भारत के नैनताल शहर में जन्मी और पली-बढ़ी मीना,अब कनाडा के Toronto शहर में निवासित हैं। 

उनके तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं|इसके अतिरिक्त उन्होंने कनाडा में बसे हिंदी और उर्दू लेखकों के एक पद्य संग्रह का सह-सम्पादन भी किया है। वह अपनी मूल भाषा हिंदी और अंग्रेजी दोनों में कविता और लेख लिखती है। उनकी कविताएं साहित्यिक पत्र -पत्रिकाओं में छपती रही हैं जिसमे सरिता,गगनांचल,हिंदी टाइम्स ,हिंदी चेतना,अनुभूति,शब्दांकन इत्यादि और भी कई नाम शामिल हैं। उनकी कवताएँ जर्मन और उर्दू में भी अनुदित है| वह अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं। हाल ही में उन्हें 'नेशनल एथेनिक प्रेस एंड मीडिया काउंसिल ऑफ कनाडा' द्वारा साहित्य (हिंदी व अंग्रेजी दोनों)और कला में विशिष्ट कार्य के लिए सम्मानित किया गया है। उन्हें 2017 में कनाडा के 150 वर्षों के जश्न में 'विजुअल आर्ट्स मिसिसॉगा' से उनकी पेंटिंग के लिए प्रथम पुरस्कार मिला। वह कनाडा के मार्टी अवार्ड्स 2019 के लिए फाइनलिस्ट रही हैं। इसके अतिरिक्त हिंदी लेखन के लिए इन्हे हिंदी की अनेक प्रमुख संस्थाओं द्वारा इन्हे सम्मानित किया जा चूका हैं जिसमें 'विश्व हिंदी संस्थान' अखिल विश्व हिंदी समिति, ग्लोबल हिंदी शोध संस्थान, गुरुग्राम विश्व विद्यालय इत्यादि कई नाम शामिल हैं| विश्व हिंदी पत्रकार एवं साहित्य समिति द्वारा इन्हें " महादेवी वर्मा विश्व हिंदी सम्मान" से सम्मानित किया गया है। 

 ये कनाडा में स्थित कई कला, सांस्कृतिक एवं हिंदी भाषा के प्रचार की संस्थओं के निदेशक मंडलों पर महत्वपूर्ण पद संभालती रही हैं। चित्रकला में भी इन्हे कई पुरस्कार मिल चुके है| वह कनाडा में स्टारबज नमक साप्ताहिक पत्रिका की प्रकाशक और शहनाई नामक रेडियो प्रोग्राम की रेडियो होस्ट भी रह चुकी हैं,साथ ही'लरना'नामक एजुकेशन सेंटर की निदेशक और संचालक भी रही हैं|आजकल वह कविता लेखन और चित्रकला की कार्यशालाएं देने में व्यस्त हैं,साथ ही वह नियमित रूप से 'स्पेशल नीड'वद्यार्थियों को कला शिक्षा देने में भी कार्यरत हैं|वह अपना अगला हिंदी कविता संकलन तैयार करने में भी कार्यरत हैं जो इस साल के मद्य तक तैयार होगा| उनका मानना है कि 'कला का साझा मंच' विभिन्न समुदायों और उनकी विभिन्नताओं को क़रीब लाकर समझने का सबसे अच्छा तरीका है और वह ऐसे कई बेहतरीन और सफल आयोजन कर चुकी हैं। वेबसाइट : www.meenachopra-artist.com     कविताएँ:  http://prajwalitkaun.blogspot.ca    अ... की कविताएँ :http://ignitedlines.blogspot.ca/       Twitter: @meenachopraTwitter: @meenachopra Facebook: @meena.chopra.art , Instagram: @meena_artist_author 

Saturday, August 10, 2019

पूरब की हूँ - श्यामल सी

"साँझ में शामिल रंगों को ओढ़े
नज़र में बटोर के मचलते मंज़र
ढलते हुए दिन के चेहरे में
मुट्ठी भर उजाला ढूँढ़्ती हूँ।
पूरब की हूँ - श्यामल सी
सूरज को अपने
गर्दिशों में ज़मीं की ढूढ़्ती हूँ।
पहन के पैरों में पायल
बहकती हवाओं की
फ़िज़ाओं के सुरीले तरन्नुम में
गुनगुनाहटें ज़िन्दगी की ढूढ़्ती हूं

पूरब की हूँ - श्यामल सी
सूरज को अपने
गर्दिशों में ज़मीं की ढूढ़्ती हूँ।

उठती निगाहों में
भर के कायनात का काजल
दूर कहीं छोर पर उफ़क के
टिमटिमाता वो सितारा ढूढ़्ती हूं

पूरब की हूँ - श्यामल सी
सूरज को अपने
गर्दिशों में ज़मीं की ढूढ़्ती हूँ।

शोख फूलों को
घूंट मस्ती के पिलाकर
चहकती धूप को आंगन में बिछाकर
ओस की बूंद में अम्बर को ढूँढ़्ती हूँ

पूरब की हूँ - श्यामल सी
सूरज को अपने
गर्दिशों में ज़मीं की ढूढ़्ती हूँ।"
-मीना

Monday, September 14, 2015

उन्मुक्त

कलम ने उठकर
चुपके से कोरे कागज़ से कुछ कहा
और मैं स्याही बनकर बह चली
मधुर स्वछ्न्द गीत गुनगुनाती,
उड़ते पत्तों की नसों में लहलहाती।
उल्लसित जोशीले से
ये चल पड़े हवाओं पर
अपनी कहानियाँ लिखने।
सितारों की धूल
इन्हें सहलाती रही।
कलम मन ही मन
मुस्कुराती रही
गीत गाती रही।
-मीना 

Friday, July 18, 2014

तीर्थ

सौंधी हवा का झोंका

मेरे आँचल में 
फिसल कर आ गिरा।
     वक्त का एक मोहरा हो गया।
     और फिर
     फ़िज़ाओं की चादर पर बैठा
     हवाओं को चूमता
     आसमानों की सरहदों में कहीं

Thursday, May 15, 2014

अघटनीय -


Sunday, April 20, 2014

अवशेष

वक्त खण्डित था, युगों में !
टूटती रस्सियों में बंध चुका था 
अँधेरे इन रस्सियों को निगल रहे थे
तब !
जीवन तरंग में अविरत मैं
तुम्हारे कदमों में झुकी हुई
तुम्हीं में प्रवाहित
तुम्हीं में मिट रही थी
तुम्हीं में बन रही थी|
तुम्हीं से अस्त और उदित मैं
तुम्हीं में जल रही थी
तुम्हीं में बुझ रही थी! 
कुछ खाँचे बच गए थे                                 
कई कहानियाँ तैर रही थीं जिनमें                       
उन्ही मे हमारी कहानी भी                             
अपना किनारा ढूँढती थी! 
एक अंत !                                           जिसका आरम्भ,                                     
दृष्टि और दृश्य से ओझल                             
भविष्य और भूत की धुन्ध में लिपटा                     मद्धम सा दिखाई देता था।  
अविरल !
शायद एक स्वप्न लोक ! 
और तब आँख खुल गई
हम अपनी तकदीरों में जग गए।
टुकड़े - टुकड़े                                                                 ज़मीं पर बिखर गए                                                            
-मीना                                                                                                                                              


Wednesday, April 2, 2014

माणिक

सपनों के सपाट कैनवास पर

रेखाएँ खींचता
असीम स्पर्श तुम्हारा
कभी झिंझोड़ता
कभी थपथपाता
कुछ खाँचे बनाता
आँकता हुआ चिन्हों को
रंगों से तरंगों को भिगोता रहा
एक रात का एक मख़मली एहसास।


कच्ची पक्की उम्मीदों में बँधा
सतरंगी सा उमड़ता आवेग
एक छलकता, प्रवाहित इंद्रधनुष
झलकता रहा गली-कूचों में
बिखरी सियाह परछाइयों
के बीच कहीं दबा दबा।


रात रोशन थी
श्वेत चाँदनी सो रही थी मुझमें
निष्कलंक!
अँधेरों की मुट्ठी में बंद
जैसे माणिक हो सर्प के
फन से उतरा हुआ।

Sunday, March 23, 2014

आनन्द मठ

मीना द्वारा निर्मित पेस्टल ऑन पेपर 
हाथों की वो छुअन और गरमाहटें
बन्द है मुट्ठी में अबतक                          
          ज्योतिर्मय हो चली हैं
            हथेली में रक्खी रेखाएँ।
         लाखों जुगनू हवाओं में भर गए हैं
           तक़दीरें उड़ चली हैं आसमानों में
            सर्दियों की कोसी धूप
             छिटक रही है दहलीज़ तक,

         और तुम – कहीं दूर –
           मेरी रूह में अंकित
            आकाश-रेखा पर चलते हुए –
             एक बिंदु में ओझल होते चले गए।

       डूब चुके हो
        जहाँ नियति –
          सागर की बूँदों में तैरती है।
      
     मेरी मुट्ठी में बंधी रेखाएँ
      ज्योतिर्मय हो चुकी हैं।
       तुम्हारी धूप
        मुझमें आ रुकी है।
-मीना चोपड़ा 


Sunday, March 16, 2014

अमावस को—

मीना चोपड़ा द्वारा निर्मित तैलचित्र 
अमावस को—
तारों से गिरती धूल में
चांदनी रात का बुरादा शामिल कर 
एक चमकीला अबीर 
बना डाला मैने
उजला किया इसको मलकर
रात का चौड़ा माथा।

Saturday, March 15, 2014

वो हल्का सा गुलाल-

''होली आई रे आई होली आई रे '' (चर्चा मंच-1554)

आँखों की जलती बुझती रौशानी के बीच कहीं 
पेस्टल चित्र - मीना द्वारा रचित  
वो हल्का सा गुलाल-
क्षितिज के मद्धम से अंधरों को अपने में समेटे 
चाँद की पेशानी पर 
टिमटिमाता है अबीर बन 
हर पूनम को
वो हल्का सा गुलाल- 

आस लगाये बैठी हूँ
उस होली की सुबह का 
जब ये चाँद पूनम से उतर कर 
अमावास के गुलाल में सितारे भरकर
मेरे मन के अंधेरों की पेशानी पर 
इन्द्रधनुश सा रौशन होगा। 

मेरा जीवन
अमावास से बने उजालों के 
एक अथाह सागर में भीगा होगा। 

-मीना चोपड़ा 

Thursday, March 13, 2014

उन्मुक्त

कलम ने उठकर

Drawing by Meena
चुपके से कोरे कागज़ से कुछ कहा
और मैं स्याही बनकर बह चली
           मधुर स्वछ्न्द गीत गुनगुनाती,
                     उड़ते पत्तों की नसों में लहलहाती।
उल्लसित जोशीले से
ये चल पड़े हवाओं पर
अपनी कहानियाँ लिखने।
           सितारों की धूल
                      इन्हें सहलाती रही।
कलम मन ही मन
             मुस्कुराती रही
                       गीत गाती रही।
-मीना चोपड़ा 

Wednesday, March 12, 2014

कविता

Pastel by Meena

वक्त की सियाही में

तुम्हारी रोशनी को भरकर
समय की नोक पर रक्खे
शब्दों का कागज़ पर
कदम-कदम चलना।

एक नए वज़ूद को
मेरी कोख में रखकर
माहिर है कितना
इस कलम का
मेरी उँगलियों से मिलकर
तुम्हारे साथ-साथ 
यूँ सुलग सुलग चलना |

-©मीना चोपड़ा 

Tuesday, March 11, 2014

और कुछ भी नहीं

Pastel on paper by Meena Chopra
ख़यालों में डूबे
वक्त की सियाही में
कलम को अपनी डुबोकर
आकाश को रोशन कर दिया था मैंने