Tuesday, March 11, 2014

और कुछ भी नहीं

Pastel on paper by Meena Chopra
ख़यालों में डूबे
वक्त की सियाही में
कलम को अपनी डुबोकर
आकाश को रोशन कर दिया था मैंने

और यह लहराते,
घूमते -फिरते, बहकते
बेफ़िक्र से आसमानी पन्ने
न जाने कब चुपचाप
आ के छुप गए
कलम के सीने में।

नज़्में उतरीं तो उतरती ही गईं मुझमें
आयते उभरीं 
तो उभरती ही गईं तुम तक।

आँखें उट्ठीं तो देखा
क़ायनात जल रही थी।

जब ये झुकीं
तो तुम थे और कुछ भी नहीं।

-©मीना चोपड़ा 

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